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न्यूज़ / Indian Rupee: रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने निचले स्तर पर, जानें क्यों हो रहा है इसका असर

Indian Rupee: रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने निचले स्तर पर, जानें क्यों हो रहा है इसका असर

Reported by: Ground Repoter | Written by: Saurabh Thakur | Agency: SN Media Network
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Indian Rupee: भारत की मुद्रा यानी भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार दबाव का सामना करता हुआ अपने सर्वकालिक निचले स्तर तक गिर गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में 8 अक्टूबर को रुपया 5 पैसे गिरकर 84.37 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। इस गिरावट के साथ ही रुपया एक नया रिकॉर्ड बना चुका है, जो पिछले रिकॉर्ड 84.32 से भी नीचे है। आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण और इसके भविष्य पर इसका क्या असर हो सकता है।

रुपया की गिरावट का कारण

Indian Rupee: रुपया के गिरने की कई वजहें हैं, जिनमें से मुख्य कारणों में अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में कटौती, वैश्विक व्यापार और वित्तीय परिस्थितियों में बदलाव और घरेलू बाजारों में कमजोर निवेश शामिल हैं। बाजारों के विशेषज्ञों के मुताबिक, अमेरिकी फेडरल रिजर्व का ब्याज दरों में 0.25% की कटौती करने का निर्णय, डॉलर को कमजोर कर सकता है। इस निर्णय ने वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में अस्थिरता बढ़ा दी है, जिससे भारतीय रुपया प्रभावित हुआ है।

रुपया का 84.38 का नया रिकॉर्ड

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में 8 अक्टूबर को रुपया 84.32 प्रति डॉलर पर खुला। इसके बाद यह 84.31 के उच्चतम स्तर तक पहुंचा, लेकिन अंत में यह 84.37 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो कि एक नया सर्वकालिक निचला स्तर है। पिछले दिन गुरुवार को रुपया 84.32 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था। इस गिरावट के पीछे घरेलू और वैश्विक दोनों कारण जुड़े हुए हैं।

कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी

रुपये की गिरावट में एक प्रमुख भूमिका कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी भी निभा रही है। कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का असर भारतीय मुद्रा पर सीधा पड़ता है, क्योंकि भारत अधिकतर अपनी ऊर्जा की जरूरतों को आयात करता है। इससे भारतीय मुद्रा में दबाव आता है, जिससे रुपया कमजोर होता है। इस समय कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने रुपये पर और अधिक दबाव डाला है।

एफआईआई की निकासी का असर

विदेशी निवेशकों की लगातार निकासी भी रुपये की कमजोरी का कारण बनी है। विदेशी निवेशकों के द्वारा भारतीय बाजार से पूंजी की निकासी के चलते घरेलू बाजारों में गिरावट आई है। इसने रुपया को और कमजोर कर दिया। इसके अलावा, डॉलर में मजबूती और घरेलू निवेशकों की ओर से बिकवाली की वजह से रुपये में और गिरावट आई है।

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विश्लेषकों का क्या कहना है?

शेयरखान बाय बीएनपी पारिबा के शोध विश्लेषक अनुज चौधरी के अनुसार, घरेलू बाजारों में बिकवाली और विदेशी कोषों की निकासी के कारण रुपये पर दबाव बढ़ा है। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और डॉलर में समग्र मजबूती की वजह से रुपये में और कमजोरी आई है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर एफआईआई की निकासी का सिलसिला जारी रहता है, तो रुपये पर और दबाव बढ़ सकता है।

रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप

हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हस्तक्षेप से रुपये को सहारा मिल सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक अक्सर विदेशी मुद्रा बाजार में दखल देकर रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। इस समय भी रिजर्व बैंक से किसी तरह का हस्तक्षेप रुपये की गिरावट को थाम सकता है और बाजार में स्थिरता ला सकता है।

फेड रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती

अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा 0.25% की ब्याज दर में कटौती का सीधा असर डॉलर की मजबूती पर पड़ा है। जेरोम पावेल, जो फेडरल रिजर्व के प्रमुख हैं, ने कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है और कुछ निगेटिव रिस्क कम हो गए हैं। इस फैसले से डॉलर में थोड़ी नरमी देखने को मिली, जिससे अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया में गिरावट आई है।

क्या आगे बढ़ सकती है रुपये की कमजोरी?

विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में और गिरावट हो सकती है। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और एफआईआई द्वारा निवेश में कमी, रुपये पर लगातार दबाव डाल सकते हैं। इसके साथ ही, अमेरिका के बाजारों में बदलाव और भारतीय बाजारों में अस्थिरता के कारण रुपये की कमजोरी बनी रह सकती है।

निष्कर्ष

भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच चुका है, जो कि भारतीय बाजारों के लिए चिंता का कारण बन सकता है। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती, कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, और विदेशी निवेशकों की निकासी ने रुपये की गिरावट को और बढ़ा दिया है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप रुपये को सहारा दे सकता है। आने वाले समय में रुपये की स्थिति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, और इसके कमजोर होने की आशंका बनी रह सकती है।

इससे भारतीय अर्थव्यवस्था और घरेलू बाजारों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर उन उद्योगों पर जो कच्चे तेल और आयात पर निर्भर हैं।

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First Published : नवम्बर 9, 2024, 04:57 अपराह्न IST

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