31 अगस्त 2025 की ये तारीख भारत-चीन रिश्तों के लिए बेहद खास है। करीब 10 महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यह पहली बैठक चीन के तियानजिन में हो रही है। करीब सात साल बाद यह मोदी का चीन दौरा भी है। खास बात ये है कि यह मुलाकात शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन से ठीक पहले हो रही है, जो इन दोनों महामुकाबिल देशों के बीच रिश्तों को नई दिशा दे सकती है। हाल के समय में दोनों देशों के बीच तनाव और रिश्तों की जटिलता ने आम लोगों के दिलों में भी तरह-तरह की बातें पैदा कर दी हैं, लेकिन आज की ये मुलाकात उम्मीद जगाती है कि फिर से एक नयी शुरुआत संभव है।
तनाव के बीच रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश
हालांकि पिछले कुछ सालों में भारत और चीन के बीच रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं, खासकर सीमा विवाद के कारण, फिर भी दोनों राष्ट्र अपने फायदे के लिए बातचीत का रास्ता खोलना चाहते हैं। अमेरिका-भारत के संबंधों में आए बदलावों ने भी इस मीटिंग की अहमियत को और बढ़ा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए भारी व्यापारिक टैरिफ ने नई चुनौतियां पैदा की हैं। ट्रंप की 50% चीजों पर लगाई गई छूट ने भारत की आर्थिक चुनौतियों को और बढ़ा दिया।
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ऐसे में चीन ने मौका खोजते हुए भारत के साथ अपने रिश्तों को सुधारने के संकेत दिए। मार्च में शी जिनपिंग ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को गुप्त पत्र लिखा था जिससे इस बातचीत की तैयारी महसूस की गई। ये कदम दर्शाता है कि दोनों देश अपनी पुरानी दुश्मनी को भुलाकर एक-दूसरे के साथ बेहतर सहयोग करना चाहते हैं।
सीमा विवाद पर बढ़ते सकारात्मक संकेत
सीमा को लेकर आए दिन तनाव की खबरें आती रही हैं, लेकिन दोनों देशों ने कुछ ठोस कदम भी उठाए हैं। इस अगस्त, चीन के विदेश मंत्री वांग यी और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच सीमा मुद्दे पर 10 बिंदुओं का समझौता हुआ है। इसमें सीमा निर्धारण के लिए विशेषज्ञ समूह बनाने की बात की गई है। यह कदम साफ करता है कि दोनों देश जल्द से जल्द सीमा विवाद को सुलझाने के लिए गंभीर हैं।
साथ ही, दोनों देशों ने आधिकारिक तौर पर कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू किया, चीनी नागरिकों के लिए भारत के पर्यटन वीजा जारी किए, और अलग-अलग फ्लाइट्स शुरू करने पर सहमति जताई है। चीन ने भारत के लिए कुछ जरूरी वस्तुओं जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्वों, उर्वरकों और सुरंग निर्माण मशीनों के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों को कम करने का आश्वासन भी दिया है। ये कदम दोनों देशों के बीच उम्मीद की किरणों को जगाते हैं।
शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन में रणनीतिक मंथन
तियानजिन में आयोजित हो रहे 25वें शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में दुनिया के 20 प्रमुख नेता हिस्सा ले रहे हैं। यह एससीओ का अब तक का सबसे भव्य सम्मेलन माना जा रहा है। चीन ने इस सम्मेलन को सिर्फ राजनीतिक मंच नहीं, बल्कि एक नई विश्व व्यवस्था के लिए अपनी ताकत दिखाने का मौका बनाया है। इस सम्मेलन में रूस, पाकिस्तान, ईरान, और मध्य एशिया के कई देशों के नेता भी मौजूद हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की इस सम्मेलन में मौजूदगी से यह संदेश जाता है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए बड़े वैश्विक शक्तियों के साथ संतुलन बनाना चाहता है। खासतौर पर अमेरिका के साथ तनाव के इस दौर में ये कदम और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की व्यापार नीति के कारण भारत को चीन के साथ सामरिक और आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
खुशी और सावधानी दोनों जरूरी
आज की यह अहम बैठक दोस्ती, समझदारी और भविष्य की संभावनाओं को लेकर सुबह की पहली किरण जैसी है। इस मुलाकात से उम्मीद की जा सकती है कि भारत-चीन के बीच वो पुराना भरोसा और दोस्ताना माहौल लौटे, जो कई सालों से कहीं खो सा गया था। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि हर बातचीत के साथ चुनौतियां भी आती हैं, और दोनों देशों को धैर्य और समझदारी से अपने हितों को लेकर कदम उठाने होंगे।
इस दौरे और मीटिंग की खबर हर भारतीय के दिल में अपने देश की शक्ति और कूटनीति पर गर्व की भावना को जागृत करती है। उम्मीद है कि यह बहुप्रतीक्षित मुलाकात सीमाओं की पारिवारिक दूरी को कम कर देश-विदेश के लोगों के बीच भाईचारे को बढ़ाएगी और आने वाले समय में दोनों देशों के लिए स्थिरता और विकास का रास्ता खोलेगी।
डिस्क्लेमर: यह लेख वर्तमान की उपलब्ध जानकारियों और रिपोर्टों के आधार पर लिखा गया है। इसमें दी गई सूचनाएँ समय के साथ बदल सकती हैं। लेखक का उद्देश्य मात्र जानकारी साझा करना है, न कि किसी भी राजनीतिक स्थिति या विवाद में पक्षपात करना। सभी पाठकों से निवेदन है कि वे संदर्भ के अनुसार विषय की पुष्टि करें।
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