बिहार के गया नगर निगम में सोमवार को एक हैरान करने वाली घटना घटी, जब डिप्टी मेयर चिंता देवी सब्जी मंडी में ठेला लगाकर सब्जी बेचती नजर आईं। यह दृश्य स्थानीय लोगों के लिए चौंकाने वाला था, क्योंकि डिप्टी मेयर बनने के बाद उनसे काफी उम्मीदें थीं। लेकिन उन्होंने अधिकारियों से मिले अनादर और उपेक्षा के खिलाफ यह कदम उठाया।
कचरा उठाने वाली से डिप्टी मेयर तक का संघर्ष
चिंता देवी का जीवन एक संघर्ष की कहानी है। वे पिछले 40 वर्षों से नगर निगम में सफाई कर्मी के रूप में काम कर रही थीं। कचरा उठाने और सफाई करने के उनके काम को देखकर लोगों ने उनकी मेहनत और समर्पण को सराहा। इस बार जब नगर निगम का डिप्टी मेयर पद आरक्षित था, तो उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनकी कड़ी मेहनत, स्वच्छता कर्मियों और स्थानीय नागरिकों का समर्थन, और विभिन्न राजनीतिक दलों की मदद से वे भारी मतों से जीत हासिल करने में सफल रही थीं।
निगम अधिकारियों से उपेक्षा से परेशान
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चिंता देवी ने कहा कि डिप्टी मेयर बनने के बाद नगर निगम के अधिकारियों ने उन्हें बिल्कुल भी सम्मान नहीं दिया। कई बार वे कार्यालय गईं, लेकिन उनकी उपस्थिति को नजरअंदाज कर दिया गया। इस निराशाजनक स्थिति से आहत होकर उन्होंने सार्वजनिक रूप से विरोध जताने के रूप में सब्जी बेचने का कदम उठाया। उनका कहना था कि यदि डिप्टी मेयर होने के बावजूद उन्हें कोई सम्मान नहीं मिल रहा है, तो इस पद का कोई महत्व नहीं रह जाता।
जनता के बीच चर्चा का विषय
चिंता देवी का सब्जी बेचने का कदम अब जनता के बीच चर्चा का विषय बन गया है। लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि जब एक सफाई कर्मी से डिप्टी मेयर तक का सफर तय करने वाली महिला को अपने पद का सम्मान नहीं मिल रहा, तो अन्य आम जनता की आवाज कौन सुनेगा? इस घटना ने नगर निगम की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
चिंता देवी के संघर्ष और प्रभाव की कहानी
चिंता देवी का संघर्ष निश्चित रूप से प्रेरणादायक है, लेकिन उनकी मेहनत और समर्पण के बावजूद अधिकारियों का अनादर उनके लिए दुखदाई रहा। यह घटना नगर निगम की कार्यशैली और स्थानीय नेताओं के सम्मान के बारे में एक गंभीर सवाल खड़ा करती है। कहीं न कहीं यह साफ करता है कि जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेताओं को उचित सम्मान मिलना चाहिए, ताकि वे अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभा सकें।
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