बिहार में शुरू हुआ आस्था का महापर्व छठ: सूर्योपासना के चार दिवसीय पर्व की तैयारियां जोरों पर

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Samastipur News Bihar

पटना, 04 नवंबर (वार्ता) — बिहार में लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ कल से नहाय-खाय के साथ विधिवत शुरू हो जाएगा। इस पर्व में सूर्योपासना का विशेष महत्व है और इसे पूरी श्रद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व के पहले दिन श्रद्धालु व्रत का संकल्प लेकर नदियों और तालाबों के निर्मल जल में स्नान कर आंतरिक शुद्धि करते हैं। इसके बाद व्रती शुद्ध घी में बना अरवा भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं।

छठ की तैयारियां जोरों पर

छठ पर्व को लेकर घर से घाट तक विशेष तैयारियां की जा रही हैं। व्रतधारी अपने घरों की साफ-सफाई में जुट गए हैं और पूजन सामग्री की खरीदारी में व्यस्त हैं। कोई चावल चुन रहा है तो कोई गेहूं सुखा रहा है। गंगा घाटों पर साफ-सफाई का काम भी जोरों पर है, जहां विभिन्न पूजा समितियां और स्वयंसेवक घाटों को सजाने और साफ-सुथरा बनाने में लगे हुए हैं। इसके अलावा, गंगा नदी की ओर जाने वाले मार्गों पर तोरण द्वार बनाए जा रहे हैं और रंगीन लाइटों से रास्तों को सजाया जा रहा है।

दूसरे दिन का व्रत: खडना

महापर्व के दूसरे दिन, जिसे ‘खडना’ कहा जाता है, व्रती दिनभर बिना जल ग्रहण किए उपवास रखते हैं। सूर्यास्त के समय वे पूजा करते हैं और फिर दूध और गुड़ से बनी खीर का सेवन करते हैं। इसके बाद से उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है, जिसमें वे अगले दिन के सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खाते-पीते।

तीसरे दिन का अर्घ्य: अस्ताचलगामी सूर्य को

तीसरे दिन, छठव्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। व्रतधारी तालाबों और नदियों में खड़े होकर सूर्य को कंदमूल और फलों से अर्घ्य देते हैं। यह दृश्य अत्यंत भव्य होता है और इस पूजा में परिवार और समाज के लोग एकजुट होते हैं।

चौथे दिन का अर्घ्य: उदीयमान सूर्य को

पर्व के चौथे और अंतिम दिन व्रतधारी उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। नदियों और तालाबों में खड़े होकर श्रद्धालु भगवान भाष्कर को अर्घ्य अर्पित करते हैं और इसके साथ ही उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत समाप्त होता है। इसके बाद व्रती अन्न ग्रहण कर व्रत का समापन करते हैं।

छठ की विशेषता: बिना पंडित और मंत्रोचारण के पूजा

छठ पर्व की खासियत यह है कि इसे करने के लिए किसी पुरोहित या मंत्रोचारण की आवश्यकता नहीं होती है। व्रती अपनी आस्था और श्रद्धा से यह पूजा करते हैं, जिसमें वे परिवार की सुख-समृद्धि और कष्टों के निवारण के लिए भगवान सूर्य की उपासना करते हैं।

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Sonu Kumar

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