बिहार समाचार: केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, गंगा नदी का जलग्रहण क्षेत्र देश की 26 फीसदी भूमि में फैला है। बिहार में 8 करोड़ लोग, और देशभर में करीब 50 करोड़ लोग गंगा के पानी से प्रभावित होते हैं। गंगा नदी का बेसिन देश का सबसे बड़ा है, लेकिन इसमें पानी की स्टोरेज क्षमता अब आधे से भी कम रह गई है। पहले गंगा में साल भर पानी रहता था, लेकिन अब नवंबर से मार्च तक गंगा में सबसे कम पानी देखा जाता है। अप्रैल, मई और अक्टूबर में पानी का बहाव औसत रहता है, जबकि जून से सितंबर तक पानी का बहाव सामान्य से 30 फीसदी ज्यादा रहता है।
गंगा की दिशा और जलग्रहण क्षेत्र में बदलाव
पटना: बिहार में गंगा के प्रवाह में न केवल कमी आई है, बल्कि इसकी दिशा भी प्रभावित हुई है। इसके जलग्रहण का दायरा सिकुड़कर बहुत छोटा हो गया है। बक्सर से कहलगांव तक गंगा की धारा पिछले दो दशकों में सिकुड़कर एक तिहाई रह गई है। गंगा का पाट चौड़ा जरूर दिखाई देता है, लेकिन पानी की धारा लगातार सिकुड़ रही है। अब अधिकतर शहरों से गंगा की धारा कोसों दूर जा चुकी है। जेठ के महीने में कई जगहों पर तो धूल भी उड़ने लगती है।
गंगा का पाट सिकुड़ने से यात्रा में वृद्धि
जहां पहले बक्सर के चौसा से शहर तक गंगा का पाट डेढ़ किलोमीटर था, वहीं अब अहिरौली से नैनीजोर तक नदी का पाट आधा किलोमीटर रह गया है। इस दौरान गंगा में कटाव भी काफी तेजी से हुआ है। पिछले कुछ समय में यहां गंगा में सिर्फ 800 क्यूसेक पानी बचा है। सुल्तानगंज से पीरपैंती तक नदी के पाट की चौड़ाई इतनी कम हो गई है कि 20-30 साल पहले कहलगांव से तीनटंगा जाने में नाव से दो घंटे लगते थे, लेकिन अब यह समय घटकर 30 मिनट रह गया है।
पटना में गंगा की धारा और गहराई में कमी
पटना में गंगा नदी कुछ जगहों को छोड़कर शहर से न्यूनतम 500 मीटर और अधिकतम 4 किलोमीटर दूर जा चुकी है। पटना जिले में गंगा की धारा आधी हो गई है। पहले 1984-85 में गंगा की गहराई करीब 35 फुट थी, अब यह 14 से 15 फुट के बीच रह गई है। दीघा से गांधी घाट तक गंगा का किनारा बदल चुका है, और वहीं गाय घाट से दीदारगंज तक गंगा में बड़े-बड़े टापू नजर आने लगे हैं। इन टापूओं पर किसानों ने खेती शुरू कर दी है। साथ ही, बड़े-बड़े पौधे भी लगाए गए हैं। पानी कम होने से क्षेत्र में कमी आई है, और भूमिगत जलस्तर भी घट गया है।
मछलियों की प्रजातियों का विलुप्त होना
गंगा में पानी की कमी के कारण मछलियों की प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। सारण के डोरीगंज और सोनपुर के पास गंगा का पानी आचमन करने योग्य भी नहीं रह गया है। मछलियों की कमी के कारण मछुआरों के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है। मछुआरे महादेव सहनी ने बताया कि पहले गंगा में हिल्सा, सौंक्ची, झींगा जैसी मछलियां मिलती थीं, लेकिन अब ज्यादातर प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। वैशाली में महनार से गुजरने वाली गंगा की धारा भी सिकुड़कर 4-5 किलोमीटर तक रह गई है। अब गंगा में जगह-जगह रेत उभरने लगती है, और गर्मी के दिनों में यही रेत सूखकर प्रदूषण का कारण बन जाते हैं। बक्सर, भोजपुर, वैशाली, मुंगेर, खगड़िया जैसे क्षेत्रों में गंगा के पास हवा में धूलकण की मात्रा अधिक देखी जाती है।
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