Sarai kale Khan: सराय काले खां से बिरसा मुंडा चौक तक: एक ऐतिहासिक बदलाव की कहानी

By
On:
Follow Us
follow
Samastipur News

Your Trusted Source of Truth

Sarai kale Khan: दिल्ली का मशहूर सराय काले खां चौक अब ‘बिरसा मुंडा चौक’ के नाम से जाना जाएगा। यह नामकरण आदिवासी क्रांतिकारी और महान नेता बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए किया गया है। इस मौके पर, आइए जानते हैं सराय काले खां के ऐतिहासिक सफर और इसकी विरासत के बारे में।

सराय काले खां: एक पुराने दौर की याद

सराय काले खां का नाम सुनते ही इतिहास के पन्ने जीवंत हो उठते हैं।

  • ‘सराय’ का मतलब: यह शब्द मुगल काल और उससे पहले के समय से जुड़ा हुआ है। शेरशाह सूरी ने जब पूरे उत्तर भारत में सड़कें बनवाईं, तो हर 12 मील पर एक सराय (यात्रियों और सैनिकों के रुकने का स्थान) बनवाई।
  • ‘काले खां’ कौन थे? यह नाम 14वीं सदी के एक सूफी संत से जुड़ा है, जो अक्सर इस क्षेत्र में रुका करते थे। उनकी स्मृति में लोदी काल में एक गुंबद भी बनवाया गया, जो आज भी कोटला मुबारकपुर में मौजूद है।

सराय काले खां का गांव और उसका बदलाव

Sarai kale Khan: कभी यह इलाका एक छोटे से गांव के रूप में जाना जाता था, जहां गुर्जर समुदाय के लोग रहते थे। समय के साथ, दिल्ली के शहरीकरण ने इस गांव को बदलकर एक आधुनिक क्षेत्र में तब्दील कर दिया।

  • अहाता काले खां: 18वीं सदी में नवाब कासिम जान के बेटे नवाब फैजुल्लाह बेग ने इस जगह को सूफी संत काले खां के सम्मान में बनवाया।
  • मुगल कनेक्शन: यह इलाका मिर्जा गालिब की बहन के कब्जे में भी रहा और बहादुर शाह जफर के आध्यात्मिक गुरु का नाम भी काले खां था।

दिल्ली के लिए आज का महत्व

आज सराय काले खां दिल्ली के दक्षिण-पूर्व जिले का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।

  • अंतरराज्यीय बस टर्मिनस (ISBT): यह बस अड्डा दिल्ली से अन्य राज्यों को जोड़ता है।
  • हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन: यह प्रमुख रेलवे स्टेशन इस क्षेत्र के पास ही स्थित है, जो यात्रियों के लिए इसे बेहद उपयोगी बनाता है।

कौन थे बिरसा मुंडा?

बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज का महानायक माना जाता है।

  • उनकी कहानी: बिरसा मुंडा ने 19वीं सदी में अंग्रेजों के अत्याचार और शोषण के खिलाफ आदिवासियों को संगठित किया। उनके संघर्ष ने आदिवासी समुदाय को आत्मसम्मान और स्वाधीनता की भावना दी।
  • नाम बदलने का महत्व: बिरसा मुंडा चौक का नामकरण उनके अद्वितीय योगदान को याद करने और समाज में जागरूकता बढ़ाने का प्रतीक है।

इतिहास और भविष्य का संगम

सराय काले खां का यह बदलाव केवल नाम तक सीमित नहीं है; यह उस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को नई पहचान देने की कोशिश है, जो भारत के आदिवासी समाज और उनके संघर्ष को उजागर करता है। यह नाम हर गुजरने वाले को उस महान नेता की याद दिलाएगा, जिन्होंने समाज के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया।

इसे भी पढ़े :-

For Feedback - support@samastipurnews.in

Leave a Comment

< PREV NEXT >