Lalu Yadav Dargha Visit Bihar की सियासत में शुक्रवार को अचानक हलचल मच गई, जब आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पटना हाईकोर्ट दरगाह पहुंचे और पूरे परिवार के साथ चादरपोशी की। उर्स मुबारक के मौके पर उन्होंने प्रदेश में शांति, भाईचारा और तरक्की की दुआ मांगी। इसके तुरंत बाद ही इस धार्मिक यात्रा को लेकर राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई और विपक्ष ने इसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़ दिया।
लालू यादव की चादरपोशी पर विपक्ष का हमला
लालू यादव की दरगाह यात्रा पर बीजेपी ने कड़ा हमला बोला। पार्टी प्रवक्ता रामसागर सिंह ने कहा कि लालू का परिवार हमेशा से धर्म को वोट बैंक से जोड़ता रहा है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “लालू कभी शंकर भगवान को जल नहीं चढ़ाते, भगवा रंग से इन्हें चिढ़ है, और चादरपोशी को ही राजनीति का साधन बना लिया है।
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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह बयानबाजी आने वाले Bihar Chunav को देखते हुए और तेज होगी। क्योंकि विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ही धार्मिक मुद्दों को चुनावी रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटते।
जदयू का तंज: मन्नत है बेटे को सीएम बनाने की
लालू प्रसाद यादव की चादरपोशी पर जदयू ने भी चुटकी ली। पार्टी प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि लालू अब दरगाह और गया में पिंडदान तक करने लगे हैं, जबकि पहले पूजा-पाठ के विरोधी रहे। उन्होंने व्यंग्य में कहा, “चादरपोशी का सबको अधिकार है, लेकिन लालू यादव की मन्नत साफ है कि बेटा तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए।”
बिहार की सियासत में इस बयान ने नई बहस छेड़ दी है। Bihar politics के जानकार मानते हैं कि लालू का यह कदम चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, क्योंकि बिहार में धर्म और जाति दोनों ही चुनावी समीकरण में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
लालू समर्थकों का बचाव: भाईचारे का संदेश

लालू यादव के समर्थकों का कहना है कि यह पूरी तरह से धार्मिक और सामाजिक पहल थी। उनका मानना है कि लालू ने केवल समाज में अमन-चैन और भाईचारे के लिए प्रार्थना की है। राजनीतिक दलों को इसे चुनावी चश्मे से नहीं देखना चाहिए।
Bihar news से जुड़े पत्रकार बताते हैं कि लालू यादव का यह कदम भले ही धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हो, लेकिन चुनावी साल में इसे सियासत से अलग करके देखना मुश्किल है। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर खूब बहस छिड़ गई है।
बिहार चुनाव और धार्मिक राजनीति का पुराना रिश्ता
बिहार की राजनीति में धर्म का मुद्दा नया नहीं है। Bihar Election के हर सीजन में कभी मंदिर, कभी मस्जिद और कभी धार्मिक यात्राओं पर बयानबाजी होती रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में विकास के मुद्दों के साथ-साथ धार्मिक और जातिगत समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं।
Lalu Yadav का यह कदम चाहे वोट बैंक की राजनीति हो या आस्था का प्रदर्शन, लेकिन आने वाले महीनों में बिहार की सियासत को और गर्म करने वाला है।
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