Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया शुरू होते ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। लेकिन एनडीए (NDA) में सीट बंटवारे को लेकर अब भी तस्वीर साफ नहीं है। बीजेपी (BJP) और जेडीयू (JDU) की जोड़ी के बीच तालमेल की कोशिशें जारी हैं, मगर सहयोगी दलों उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की मांगें इस गठबंधन की रणनीति को उलझा रही हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह विवाद केवल सीटों का नहीं, बल्कि बिहार राजनीति (Bihar Politics) के भविष्य का संकेत भी है।
NDA Seat Sharing Dispute: क्या दिल्ली में सुलझेगा पेच?
एनडीए में सीट शेयरिंग (Seat Sharing in NDA) को लेकर अब फैसला दिल्ली में होगा। राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने साफ कहा है कि बातचीत अभी पूरी नहीं हुई है और वे जल्द दिल्ली में बैठक करेंगे। बीजेपी नेतृत्व ने स्थिति को संभालने के लिए खुद गृहमंत्री अमित शाह और अध्यक्ष जेपी नड्डा को आगे किया है। इससे यह स्पष्ट है कि गठबंधन में आपसी भरोसा डगमगा गया है। यह स्थिति 2020 के विधानसभा चुनाव जैसी यादें ताजा कर रही है, जब कुछ सहयोगी दलों की नाराजगी ने एनडीए को नुकसान पहुंचाया था।
Chirag Paswan की डिमांड ने बढ़ाई BJP-JDU की मुश्किल
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) [LJPRV] के अध्यक्ष चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने एक बार फिर अपने तेवर दिखाए हैं। सूत्रों के मुताबिक, वे गठबंधन में तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में 40 सीटों की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर महागठबंधन (Grand Alliance) में मुकेश सहनी को इतनी सीटें और डिप्टी सीएम का ऑफर मिल सकता है, तो उनकी पार्टी की मांग भी जायज़ है। हालांकि, चिराग ने मीडिया से कहा कि वह दिल्ली में होने वाली मीटिंग के बाद ही कुछ कहेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार चुनाव (Bihar Elections) के दौरान अगर चिराग नाराज हुए तो BJP-JDU के समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं।
Jitan Ram Manjhi और HAM की 15 सीटों की मांग से बढ़ा विवाद
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) ने अपने X पोस्ट के जरिए इशारों में भाजपा-जदयू को चेतावनी दी है। उन्होंने लिखा “हो न्याय अगर तो आधा दो…” इस शायरीनुमा बयान ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी। हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि वह बीजेपी अध्यक्ष नड्डा जी के फैसले के साथ हैं। फिर भी यह संकेत है कि HAM को कम सीटें मिलने पर असंतोष बढ़ सकता है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मांझी, चिराग और कुशवाहा की यह “तिकड़ी” BJP-JDU का खेल (BJP-JDU ka khel) बिगाड़ सकती है।
BJP और JDU का लक्ष्य: न्यूनतम नुकसान, अधिकतम एकता
बीजेपी और जेडीयू का मुख्य उद्देश्य है कि जितनी जल्दी हो सके सीट बंटवारे का ऐलान हो जाए ताकि वे एकजुट होकर महागठबंधन के खिलाफ उतर सकें। खबर है कि एनडीए में सीट बंटवारे का एलान अब रविवार तक टाल दिया गया है। बीजेपी की रणनीति यह है कि अपने प्रमुख सहयोगियों को सीमित सीटों में मनाया जाए, ताकि चुनावी फोकस राजग (NDA) की मजबूती पर रहे, न कि आंतरिक विवादों पर। राजनीति विशेषज्ञों के अनुसार, अगर बीजेपी-JDU यह संतुलन बना लेते हैं, तो वे फिर से सत्ता में वापसी कर सकते हैं। लेकिन अगर नहीं, तो राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM), HAM, और LJPRV जैसे दल निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
बिहार चुनावों में सहयोगी दलों की भूमिका क्यों अहम है?
बिहार की राजनीति में छोटे दल अक्सर “किंगमेकर” की भूमिका निभाते रहे हैं। 2015 में मांझी, 2020 में चिराग, और 2024 के लोकसभा चुनाव में कुशवाहा की भूमिका ने यह साबित किया है कि जब तक सहयोगियों को सम्मान नहीं मिलता, गठबंधन कमजोर हो सकता है। इसलिए 2025 के चुनाव में भी BJP-JDU को इस सच्चाई से सीख लेते हुए सामंजस्य बनाना होगा। यही वजह है कि इस बार दिल्ली से सीधे निगरानी रखी जा रही है ताकि कोई “तीसरा कोण” चुनावी रणनीति को न बिगाड़ दे।
Bihar Elections 2025 में NDA के अंदर सीट बंटवारे को लेकर मचे घमासान ने यह साबित कर दिया है कि सहयोगी दलों को साधना आसान नहीं। अगर बीजेपी और जेडीयू तीनों सहयोगियों चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, और उपेंद्र कुशवाहा को संतुष्ट नहीं कर पाए, तो इसका असर सीधा चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है। राजनीतिक समीकरण बदलने में बिहार माहिर है, और इस बार भी तस्वीर किसी भी समय बदल सकती है।
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