Bihar Election 2025: 23 अक्टूबर 2025, पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के टिकट वितरण की प्रक्रिया अब लगभग पूरी हो चुकी है और इस बार भी राज्य की राजनीति में परिवारवाद (nepotism in Bihar Election 2025) की गूंज सुनाई दे रही है। सभी बड़े राजनीतिक दलों एनडीए से लेकर महागठबंधन तक ने अपने परिवार के सदस्यों को टिकट देकर यह साफ कर दिया है कि ‘विरासत की राजनीति’ से बिहार अभी भी मुक्त नहीं हो पाया है।
BJP और JDU ने बढ़ाई विरासत की परंपरा
BJP ने इस चुनाव में कई दिग्गज नेताओं के बेटों और बेटियों को टिकट दिया है। तारापुर से सम्राट चौधरी, झंझारपुर से नीतीश मिश्रा, औरंगाबाद से त्रिविक्रम सिंह, और बांकीपुर से नितिन नवीन जैसे नाम राजनीति में अगली पीढ़ी को आगे ला रहे हैं। वहीं, JDU ने भी सांसदों और मंत्रियों के बेटा-बेटी को चुनावी मैदान में उतारा है। नवीनगर से चेतन आनंद, चेरिया बेरियापुर से अभिषेक कुमार और घोसी से ऋतुराज कुमार जैसे प्रत्याशी इसका उदाहरण हैं। ये संकेत हैं कि बिहार की सत्ताधारी राजनीति में अब भी परिवार की जड़ें गहराई तक पैठी हुई हैं।
RJD और कांग्रेस में विरासत की राजनीति सबसे हावी
RJD हमेशा से परिवारवाद के लिए चर्चा में रही है। तेजस्वी यादव, लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के बेटे के रूप में पार्टी का चेहरा बने हुए हैं।
इस बार पार्टी ने शाहाबुद्दीन के बेटे ओसामा, शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी और पूर्व मंत्री कांति सिंह के बेटे ऋषि कुमार जैसे कई युवा चेहरों को मैदान में उतारा है। इसी तरह, कांग्रेस ने भी पूर्व सांसदों और मंत्रियों के बेटों को टिकट देकर वही रास्ता अपनाया है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि nepotism in Bihar Election अब एक परंपरा बन चुका है, जिससे जनता में नाराजगी भी बढ़ रही है, पर दलों के पास विकल्प सीमित हैं।
छोटे दल भी नहीं बचे परिवारवाद की लहर से
HAM, VIP, RLSP (अब रालोमो) और LJP (आर) जैसे छोटे दलों ने भी इस बार अपने करीबियों पर भरोसा जताया है। हम पार्टी ने जीतनराम मांझी की समधन ज्योति देवी और बहू दीपा कुमारी को टिकट दिया है। रालोमो प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी स्नेहलता को सासाराम से प्रत्याशी बनाया है, जबकि VIP प्रमुख मुकेश सहनी ने अपने भाई संतोष सहनी को मैदान में उतारा है।
LJP (आर) नेता चिराग पासवान ने भी अपने भांजे सीमांत मृणाल और राजनीतिक रिश्तेदारों को टिकट देकर परिवारवाद के आरोपों को और बल दिया है। यह स्पष्ट है कि चाहे बड़ा दल हो या छोटा, बिहार की राजनीति में रिश्तों की अहमियत टिकट से भी बड़ी बन गई है।
जनता के बीच नाराजगी और युवाओं की नई उम्मीद
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार के मतदाता अब नई सोच की उम्मीद में हैं। युवा वर्ग यह चाहता है कि टिकट योग्यता और जमीनी काम के आधार पर मिले, न कि सिर्फ पारिवारिक नाम पर। जन सुराज जैसे नए प्लेटफॉर्म और प्रशांत किशोर जैसे नेता इस चुनाव में merit-based राजनीति की बात कर रहे हैं, जिससे कुछ हद तक उम्मीद जगी है।
हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जनता 2025 के इस चुनाव में परिवारवाद को चुनौती देने का साहस दिखाएगी या फिर पारंपरिक नामों को ही दोबारा चुन लेगी।
क्या 2025 में बदलेगा बिहार का राजनीतिक DNA?
Bihar Election 2025 इस मायने में खास है कि यह राज्य की पुरानी राजनीति और नई सोच के बीच का मुकाबला है। परिवारवाद बनाम योग्यता का यह संघर्ष आने वाले वर्षों में बिहार की दिशा तय करेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जनता इस बार merit को तरजीह देती है, तो यह चुनाव राज्य की राजनीति में ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है।
यह भी पढ़ें:- Bihar Election 2025: अमित शाह ने रातों-रात बदल दी पूरी रणनीति, बीजेपी नेताओं में मचा हड़कंप!
यह भी पढ़ें:- Bihar Assembly Election 2025: झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बदला समीकरण, दलित-आदिवासी वोट पर नजर