पितृ पक्ष 2025: पूर्वजों और जानवरों का श्राद्ध?
खबर का सार AI ने दिया. न्यूज़ टीम ने रिव्यु किया.
- पितृ पक्ष में पूर्वजों के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है।
- क्या जानवरों का भी श्राद्ध किया जा सकता है? धार्मिक मान्यताएँ विरोधी हैं।
- श्राद्ध, परिवार को जोड़ने और सम्मान दर्शाने का अवसर है।
Pitru Paksha 2025: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का समय पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दौरान किया गया श्राद्ध और तर्पण परिवार में सुख-समृद्धि लाता है। लेकिन हाल के वर्षों में यह सवाल अधिक चर्चा में है कि क्या इंसानों के साथ-साथ जानवरों का भी श्राद्ध किया जा सकता है। आइए जानते हैं कि श्राद्ध पक्ष की परंपराओं में क्या कहा गया है और धार्मिक दृष्टि से इसका क्या महत्व है।
श्राद्ध का महत्व और Pitru Paksha 2025 की अहमियत

पितृ पक्ष 2025 के दौरान हर हिंदू परिवार अपने पूर्वजों के लिए पिंड दान और तर्पण करता है। यह धार्मिक कृत्य केवल कर्मकांड नहीं बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव भी है। शास्त्रों में कहा गया है कि पूर्वज इस समय धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से श्रद्धा की अपेक्षा रखते हैं।
श्राद्ध का मूल उद्देश्य पितरों की आत्मा को तृप्त करना है। ब्राह्मणों को भोजन कराना, अनाज और वस्त्र दान करना तथा जल अर्पण करना इसके मुख्य अंग हैं। कई विद्वान इसे ancestral rituals और Hindu traditions का अहम हिस्सा मानते हैं। यही कारण है कि हर साल करोड़ों लोग पूरे विश्वास के साथ श्राद्ध करते हैं।
जानवरों का श्राद्ध कर सकते क्या?
आजकल कई परिवारों में पालतू जानवर भी परिवार का हिस्सा माने जाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जानवरों का श्राद्ध कर सकते क्या? धर्मग्रंथों में सीधे तौर पर इसका उल्लेख भले कम मिले, लेकिन कई परंपराओं में इसे मान्यता दी गई है।
कुछ लोग इसे janwaro ka shradh या animal shradh कहते हैं। जब किसी प्रिय पालतू कुत्ते, बिल्ली या पक्षी का निधन होता है तो परिवारजन उनके लिए भी तर्पण या भोजन दान करते हैं। इसे आत्मा के प्रति सम्मान और करुणा का प्रतीक माना जाता है।
धर्माचार्यों का मानना है कि आत्मा हर जीव में होती है, चाहे वह मनुष्य हो या पशु-पक्षी। इसलिए कई लोग पशु-पक्षी का श्राद्ध भी करते हैं और मानते हैं कि इससे आत्मा को शांति मिलती है।
किसका श्राद्ध नहीं करें?
श्राद्ध से जुड़े शास्त्रों में कुछ नियम भी बताए गए हैं। जैसे कि किसका श्राद्ध नहीं करें, इस बारे में कहा गया है कि जो लोग अधर्म या पापपूर्ण जीवन के कारण मरे हों, उनका श्राद्ध सामान्य विधि से नहीं किया जाता। उनके लिए विशेष पूजा या प्रायश्चित की आवश्यकता होती है।
इसी तरह, जिनका निधन असमय या असामान्य परिस्थितियों में हुआ हो, उनके श्राद्ध की विधि भी अलग होती है। यही कारण है कि विद्वान पंडित से परामर्श लेना आवश्यक माना जाता है। इससे व्यक्ति सही कर्मकांड कर पाता है और उसे मानसिक शांति भी मिलती है।
आधुनिक समाज में श्राद्ध की प्रासंगिकता

आज की युवा पीढ़ी भी इस विषय पर सक्रिय है। इंटरनेट पर लोग जानवरों का श्राद्ध और अन्य प्रश्नों पर लगातार चर्चा कर रहे हैं। सोशल मीडिया और समाचार पोर्टल्स पर यह विषय trending बना रहता है।
पितृ पक्ष सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि परिवार को जोड़ने और पूर्वजों को याद करने का अवसर भी है। विदेशों में बसे भारतीय भी इस दौरान ऑनलाइन पूजा या वर्चुअल तर्पण का सहारा लेते हैं। यह दिखाता है कि spiritual offerings और ancestral respect का भाव समय और स्थान से परे है।
श्राद्ध केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि पूर्वजों और प्रियजनों के प्रति सम्मान की परंपरा है। चाहे इंसान हों या पालतू पशु-पक्षी, हर आत्मा का महत्व है। पितृ पक्ष हमें यही सिखाता है कि श्रद्धा और करुणा से किया गया हर कार्य हमें आत्मिक संतोष और पारिवारिक समृद्धि देता है।
Disclaimer: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पारंपरिक मान्यताओं पर आधारित है। इसे किसी भी तरह की व्यक्तिगत राय या वैज्ञानिक दृष्टिकोण न समझें। किसी भी कर्मकांड से पहले योग्य आचार्य या पंडित से परामर्श अवश्य लें।
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