JNU 2025 Report: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में पिछले 10 सालों में महिला छात्रों और अनुसूचित जाति-जनजाति (SC/ST) छात्रों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन (JNUTA) की नई रिपोर्ट ‘State of the University’ (अक्टूबर 2025 अपडेट) में यह खुलासा हुआ है कि विश्वविद्यालय में न केवल महिला छात्रों का नामांकन घटा है, बल्कि अनुसंधान और शैक्षणिक निवेश में भी गंभीर कमी आई है।
JNU में महिला छात्रों की संख्या में गिरावट
रिपोर्ट के मुताबिक, 2016-17 में जेएनयू में महिला छात्रों की संख्या 51.1% थी, जो अब घटकर केवल 43.1% रह गई है। यानी अब विश्वविद्यालय में महिला छात्रों को अल्पसंख्यक वर्ग में गिना जा सकता है। JNUTA ने इस गिरावट को “Gender Inequality” (लिंग असमानता) का गंभीर संकेत बताया है।
संगठन का कहना है कि पहले के वर्षों में विश्वविद्यालय में सामाजिक समावेशन (Social Inclusion) और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के कई प्रयास सफल रहे थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में नीतिगत बदलावों के कारण यह रुझान उलट गया है।
महिला शिक्षकों की संख्या में भी कमी
JNUTA की रिपोर्ट के अनुसार, 31 मार्च 2025 तक जेएनयू में कुल 700 शिक्षकों में से केवल 208 महिलाएं हैं। यह संख्या 29.7% है — जो 2016 और 2022 की रिपोर्ट से भी कम है। रिपोर्ट में कहा गया कि यह गिरावट सिर्फ छात्रों तक सीमित नहीं रही, बल्कि शिक्षकों में भी Gender Disparity बढ़ी है।
प्रवेश प्रक्रिया और सुरक्षा व्यवस्था में बदलाव
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला छात्रों की संख्या घटने के पीछे दो प्रमुख कारण हैं:
- प्रवेश परीक्षाओं का संचालन बंद होना
- रिसर्च प्रोग्राम से ‘Deprivation Point System’ का हटना, जो पहले सामाजिक रूप से पिछड़े छात्रों को अतिरिक्त अंक देकर प्रवेश में मदद करता था।
साथ ही, सुरक्षा व्यवस्था भी अब पहले जैसी नहीं रही। वर्ष 2017 में विश्वविद्यालय ने GSCASH (Gender Sensitisation Committee Against Sexual Harassment) को खत्म कर ICC (Internal Complaints Committee) बना दिया। JNUTA का आरोप है कि ICC प्रभावी रूप से काम नहीं करती, जिसके कारण महिला छात्रों में भय और असुरक्षा का माहौल बना हुआ है।
SC/ST छात्रों की संख्या में भी गिरावट
अनुसूचित जाती (SC) और जनजाती (ST) में भी आंकड़े देखने को मिले कम। 2021-22 में SC छात्रों की संख्या 1,500 थी मगर अब घटकर 1,143 हो गई है। इसी तरह ST की संख्या 741 से 545 हो गई है। इस कारण SC छात्रों का विश्वविद्यालय में हिस्सा 15% से घटकर 14.3% और ST छात्रों का हिस्सा 7.4% से घटकर 6.8% हो गया, जो आरक्षित प्रतिशत से कम है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (JNUTA) ने छात्रों की संख्या में आई इस गिरावट के लिए विश्वविद्यालय के प्रशासनिक और प्रवेश संबंधी बदलावों को ज़िम्मेदार ठहराया है, जिसमें विशेष रूप से राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) के माध्यम से प्रवेश परीक्षा शुरू करना शामिल है। JNUTA का मानना है कि इन परिवर्तनों और विश्वविद्यालय की स्वायत्तता (Autonomy) में आई कमी के कारण सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के समावेशन (Social Inclusion) पर नकारात्मक असर पड़ा है, जिससे SC, ST और महिला छात्रों के नामांकन में गिरावट आई है।
शैक्षणिक खर्च और निवेश में भारी कटौती
रिपोर्ट में कहा गया है कि जेएनयू का शैक्षणिक खर्च 2015-16 में ₹30.28 करोड़ था, जो अब घटकर ₹19.29 करोड़ रह गया है।
यह कुल 36.3% की कमी दर्शाता है।
- सेमिनार और कार्यशालाओं पर खर्च में 97.2% की कमी
- प्रयोगशालाओं पर 76.3% की कमी
- फील्डवर्क और सम्मेलनों में 79.6% की कमी
JNUTA ने इसे अनुसंधान और शिक्षण संस्कृति के कमजोर होने का संकेत बताया है।
अनुसंधान संस्कृति कमजोर पड़ी
रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि विश्वविद्यालय की अनुसंधान संस्कृति (Research Culture) में गिरावट आई है, जो सीधे तौर पर शोधार्थियों की संख्या में आई भारी कमी से पता चलता है। एक समय था जब अनुसंधान छात्रों की संख्या अन्य (स्नातक और पोस्टग्रेजुएट) छात्रों की तुलना में अधिक होती थी, लेकिन अब यह रुझान उलट गया है। आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं: 2016-17 में 5,432 रही अनुसंधान छात्रों की संख्या अब घटकर लगभग 3,286 रह गई है, जो विश्वविद्यालय में शोध और उच्च शिक्षा की नींव कमजोर होने का स्पष्ट संकेत है।
यह सारी जानकारी JNUTA के अनुसार दी गई रिपोर्ट के मुताबिक है। JNU में महिला छात्रों और शिक्षकों की संख्या में इतनी गिरावट खुद में एक बहुत बाद विषय है, जिसपर आगे की जांच होना ज़रूरी है और विश्वविद्यालय का उस पर काम करना अनिवार्य है।
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