बेगूसराय स्थित सिमरिया गंगा तट न सिर्फ गंगा स्नान और मोक्ष की पावन स्थली है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और धार्मिक स्थल भी बन चुका है। यहां हर साल नेपाल से लेकर भारत के विभिन्न हिस्सों से हजारों श्रद्धालु आकर गंगा में स्नान करते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस समय सिमरिया में चल रहे राजकीय कल्पवास मेला में हर वर्ष की तरह देश-विदेश से श्रद्धालु आकर खालसा (धार्मिक झंडा) लगाकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा को अंजाम दे रहे हैं। इस बार कुल 105 खालसा लगाए गए हैं, जिनमें नेपाल सहित बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम और मध्य प्रदेश के श्रद्धालु शामिल हैं।
गंगा किनारे एक महीने तक चल रहा है कल्पवास
कार्तिक मास में प्रत्येक साल सिमरिया में आयोजित होने वाला यह कल्पवास मेला विशेष महत्व रखता है। एक महीने तक श्रद्धालु गंगा के किनारे आश्रमों और खालसों में निवास करते हुए भक्ति, मोक्ष और अध्यात्म की साधना करते हैं। यह कार्यक्रम गंगा पूजन से शुरू होता है और गंगा आरती के साथ समाप्त होता है। दिनभर में भजन कीर्तन और प्रवचन होते रहते हैं। इस वर्ष 105 खालसा लगाए गए हैं, जिनमें विभिन्न स्थानों पर रामायण पाठ, श्रीमद्भागवत, और वेदों की ऋचाएं गूंज रही हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह समाजिक और सांस्कृतिक समन्वय को भी बढ़ावा देता है।
सिमरिया में प्रशासन द्वारा की गई बेहतर व्यवस्था
राजकीय कल्पवास मेला के आयोजन में प्रशासन ने समुचित व्यवस्था की है। यहां की भीड़ को ध्यान में रखते हुए बिजली, पानी, शौचालय, सफाई और सुरक्षा की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रशासन ने मेडिकल कैंप भी स्थापित किए हैं, जिससे श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की आपातकालीन स्थिति में तुरंत सहायता मिल सके। साथ ही, केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। जिला प्रशासन के अधिकारियों, डीएम और एसपी द्वारा लगातार मेला स्थल का निरीक्षण किया जा रहा है, ताकि किसी भी प्रकार की कमी न हो।
स्वामी चिदात्मन जी ने किया सिमरिया के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश
सिमरिया की धार्मिक महत्वता पर स्वामी चिदात्मन जी ने कहा कि यह स्थल केवल बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे भारत और नेपाल से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। उनका कहना था कि सिमरिया में राजा जनक ने कल्पवास किया था और यही वह स्थान है जहां माता सीता और श्रीराम ने गंगा में स्नान किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तो अमृत का वितरण इसी स्थान पर हुआ था, जिसे अब कुंभ के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयासों से यहां अद्भुत विकास हुआ है, और भविष्य में यहां की व्यवस्था और भी बेहतर होगी।
खालसा जन सेवा समिति के अध्यक्ष ने बताया आयोजन की विशेषता
खालसा जन सेवा समिति के अध्यक्ष जगतगुरु विष्णुदेवाचार्य ने बताया कि इस बार 105 खालसा लगाए गए हैं, जिनमें नेपाल से सबसे बड़ी संख्या में श्रद्धालु आए हैं। इसके अलावा मिथिला, बिहार, अयोध्या, वृंदावन और उड़ीसा से भी खालसा यहां पहुंचे हैं। प्रत्येक खालसा में रामायण, श्रीमद्भागवत और कार्तिक महात्म्य की कथा सुनाई जा रही है। इस मेले में कुल 10,000 से अधिक श्रद्धालु कल्पवास कर रहे हैं। यह मेला हर दिन नया उत्साह और ऊर्जा लेकर आता है।
नेपाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं
नेपाल के सप्तरी से आए सियाराम दास त्यागी ने बताया कि वे कई वर्षों से सिमरिया धाम आकर कल्पवास कर रहे हैं। नेपाल से लगभग एक हजार श्रद्धालु इस बार सिमरिया आए हैं, जबकि स्नान करने के लिए 10,000 से अधिक लोग यहां आते जाते हैं। उनका कहना था कि सिमरिया की धार्मिक और आध्यात्मिक माहौल उन्हें शांति और समृद्धि की ओर अग्रसर करता है।
डीएम तुषार सिंगला ने की व्यवस्था की सराहना
बेगूसराय के डीएम तुषार सिंगला ने कहा कि सिमरिया एक अद्भुत धार्मिक स्थल है, जहां श्रद्धालुओं को सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। प्रशासन ने यहां बिजली, पानी, शौचालय, सफाई, सुरक्षा और चिकित्सा व्यवस्था को सुनिश्चित किया है। इसके अलावा सुरक्षित स्नान घाट भी तैयार किए गए हैं ताकि श्रद्धालु बिना किसी परेशानी के गंगा स्नान कर सकें।
निष्कर्ष
सिमरिया में आयोजित होने वाला कल्पवास मेला न केवल बिहार और नेपाल के श्रद्धालुओं को एक साथ लाता है, बल्कि यह भारत और नेपाल के बीच धार्मिक समन्वय का एक बड़ा उदाहरण भी है। यहां की व्यवस्थाएं, प्रशासन की सतर्कता और श्रद्धालुओं का उत्साह इसे एक अद्वितीय धार्मिक आयोजन बना देते हैं। इस मेले के जरिए सिमरिया न केवल एक पवित्र स्थल के रूप में बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में उभर रहा है।
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