Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी दूर हो गई है। दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से 45 मिनट की मुलाकात के बाद कुशवाहा ने मीडिया से कहा कि “एनडीए में सब कुछ ठीक है।” इससे पहले उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा था कि ‘नथिंग इज वेल इन एनडीए’, जिससे गठबंधन में तनाव बढ़ गया था। दूसरी ओर, चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने बड़ा फैसला लेते हुए बिहार चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है।
NDA में उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी किस बात पर थी
राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी मुख्य रूप से सीटों के बंटवारे को लेकर थी। रालोमो के खाते की दो महत्वपूर्ण सीटें- महुआ और दिनारा- क्रमशः लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के खाते में जाने की खबरों से वह नाराज थे। उन्होंने गठबंधन के उम्मीदवारों के नामांकन का बहिष्कार करने की घोषणा भी कर दी थी। हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में 45 मिनट की मुलाकात के बाद उनके सुर बदल गए। मुलाकात के बाद कुशवाहा ने स्पष्ट किया कि एनडीए में विवाद के जो बिंदु थे, उन पर शीर्ष नेताओं से बात हो गई है और अब एनडीए में सब ठीक है।
प्रशांत किशोर ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है?
‘जन सुराज’ पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव में खुद उम्मीदवार नहीं बनने का बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला किसी राजनीतिक रणनीति के तहत नहीं, बल्कि ‘जनहित’ और ‘बड़े मकसद’ को ध्यान में रखकर लिया गया है। प्रशांत किशोर ने कहा कि उनका व्यक्तिगत लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि उनकी पार्टी, जन सुराज, कम से कम 150 सीटें जीते, अन्यथा इसे उनकी व्यक्तिगत हार माना जाएगा। उनका यह कदम यह दर्शाता है कि वह खुद चुनावी मैदान में उतरने के बजाय पार्टी की रणनीति और संगठन को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।
इस घटनाक्रम का बिहार चुनाव पर क्या असर होगा?
उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी खत्म होने से एनडीए गठबंधन में एकजुटता का संदेश गया है, जो चुनाव से ठीक पहले गठबंधन के लिए एक बड़ी राहत की बात है। अब एनडीए मजबूती के साथ चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। वहीं, प्रशांत किशोर का स्वयं चुनाव न लड़ने का फैसला उन्हें एक रणनीतिकार और संगठनकर्ता की भूमिका में रखता है, जिससे वह पूरे बिहार में अपनी पार्टी जन सुराज के लिए व्यापक रूप से प्रचार कर सकेंगे और एक नई राजनीतिक विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे।
उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी दूर होने से एनडीए को बड़ा बल मिला है, जबकि प्रशांत किशोर ने चुनाव न लड़ने का फैसला कर खुद को रणनीतिकार के रूप में स्थापित किया है। दोनों ही घटनाक्रम आगामी बिहार चुनाव के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करेंगे।
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