समस्तीपुर/विभूतिपुर [विनय भूषण] – समस्तीपुर के विभूतिपुर प्रखंड के सिंघियाघाट की बेटी विद्या कुमारी ने अपनी दिव्यांगता को पीछे छोड़ते हुए टेबल टेनिस की दुनिया में धमाल मचा दिया है। विद्या ने समाज के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बनकर दिखाया कि कड़ी मेहनत और समर्पण से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। उन्होंने न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपने खेल का जलवा बिखेरा है, जो उनके दृढ़ संकल्प और साहस का प्रमाण है। उनकी उपलब्धियां नारी सशक्तिकरण की मिसाल हैं और समाज में बेटा-बेटी के भेदभाव को चुनौती देती हैं।
दिव्यांगता को मात देकर खेली टेबल टेनिस
2018 में विद्या ने पहली बार व्हीलचेयर पर टेबल टेनिस खेलना शुरू किया। शुरुआत में, उन्होंने स्थानीय स्तर पर रेस साहस मैराथन में पहला पुरस्कार जीता। 2019 में मोहाली में आयोजित नेशनल बास्केटबॉल चैंपियनशिप में चौथा स्थान और 2022 में भारत की पहली व्हीलचेयर डिलीवरी गर्ल के लिए मास्ट्री अवार्ड हासिल किया। इन उपलब्धियों ने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया, और उन्होंने टेबल टेनिस को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया।
इंदौर में आयोजित 2022 की टेबल टेनिस राष्ट्रीय चैंपियनशिप में विद्या ने एकल में रजत पदक जीता। इसके बाद, अहमदाबाद में हुई यूटीटी पैरा टेबल टेनिस राष्ट्रीय प्रथम रैंकिंग चैंपियनशिप 2023-24 में उन्होंने एकल में रजत और युगल में कांस्य पदक जीता। यही नहीं, रियाद में हुई आईटीटीएफआई सऊदी अरब पैरा ओपन चैंपियनशिप 2023 में कांस्य पदक और खेलो इंडिया पैरा गेम्स 2023 में भी रजत पदक जीतकर विद्या ने अपने खेल कौशल का लोहा मनवाया।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चमकी विद्या की प्रतिभा
विद्या की कड़ी मेहनत का सफर यहीं नहीं रुका। पटाया में आयोजित आईटीटीएफ एफए40 थाईलैंड पैरा ओपन 2024 में उन्होंने मिक्स डबल्स में रजत पदक जीता। अब विद्या एशियन गेम्स 2026 और 2028 पैरालंपिक की तैयारी कर रही हैं। इसके लिए वे चंडीगढ़ में स्पाइनल रिहैब में अपने कौशल को और निखार रही हैं।
सरकार से अपेक्षित सहयोग की जरूरत
विद्या की उपलब्धियां निश्चित रूप से गौरव का विषय हैं, लेकिन अब समय है कि सरकार और प्रशासन उनकी खेल यात्रा में सहयोग प्रदान करें। स्पोर्ट्स व्हीलचेयर और आर्थिक सहायता की जरूरत है ताकि वे अपने सपनों को पूरा कर सकें और देश के लिए और अधिक पदक जीत सकें।
समाज के लिए प्रेरणा: विद्या कुमारी की संघर्ष गाथा
विद्या के संघर्ष की कहानी समाज के लिए एक बड़ा सबक है। 27 अप्रैल 2007 को सिंघियाघाट पुल से गिरने के बाद उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई, जिससे वे लकवाग्रस्त हो गईं। उनके परिवार ने हर संभव इलाज कराने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए विद्या ने चंडीगढ़ स्पाइनल रिहैब में अपने जीवन की नई दिशा खोजी। ग्यारह साल तक बेड पर रहने के बाद 2018 में उन्होंने टेबल टेनिस खेलना शुरू किया और आज उनकी प्रतिभा को दुनिया सलाम कर रही है।
विद्या की सफलता: समाज के लिए गर्व का विषय
विद्या की सफलता समाज के उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है, जो दिव्यांगों को कमजोर मानते हैं। विद्या ने यह साबित कर दिया है कि सच्चे हौसले और मेहनत से हर चुनौती को पार किया जा सकता है। आज वह न सिर्फ एक सफल टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं बल्कि नारी सशक्तिकरण और समाज में समानता का प्रतीक भी हैं। उनकी कहानी हर लड़की और हर दिव्यांग व्यक्ति के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
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