Do Patti Review: ‘सीता और गीता’ की कहानी का नया संस्करण, काजोल के कमजोर संवाद और कृति सेनन की औसत एक्टिंग

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Do Patti Review: फिल्म ‘तीन पत्ती’ की यादें ताजा करते हुए ‘दो पत्ती’ आई है। इसमें दो पत्तियों का प्रतीक हुकुम के इक्के के रूप में उभरता है, लेकिन इस बार कहानी का खेल ताश के पत्तों से नहीं, बल्कि रिश्तों की उलझनों से भरा हुआ है। इस फिल्म की कहानी और संवाद की कड़ी मेहनत करने के बावजूद, मुख्य किरदारों में वह प्रभाव नहीं दिखता जो ‘सीता और गीता’ या ‘चालबाज’ जैसी फिल्मों में था।

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कहानी और कलाकारों की एक झलक

कलाकार: काजोल, कृति सेनन, तनवी आजमी, शाहीर शेख, बृजेंद्र काला, प्राची शाह पांड्या, चितरंजन त्रिपाठी, विवेक मुश्रान
लेखक: कनिका सिंह ढिल्लों
निर्देशक: शशांक चतुर्वेदी
निर्माता: कृति सेनन, कनिका सिंह ढिल्लों
रिलीज डेट: 25 अक्तूबर 2025

डबल रोल की कमजोरी और कहानी की उलझनें

Do Patti Review: ‘दो पत्ती’ में कृति सेनन ने दो किरदार निभाए हैं: एक चालाक, आत्मविश्वासी लड़की और दूसरी भावुक और दुखियारी। ये जुड़वा बहनें हैं, जिनमें एक को बचपन में हॉस्टल भेजा गया था, और वह कहानी में तब लौटती है जब दूसरी को नया बॉयफ्रेंड मिलता है। हालांकि, कहानी एक ही घर में केंद्रित रह जाती है और मुख्य पात्र की रईसी का दावा होते हुए भी उसके किरदार में ठोस प्रभाव नहीं दिखता।

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काजोल का कमजोर किरदार और संवाद

फिल्म में काजोल उत्तराखंड पुलिस की एक दरोगा के किरदार में नजर आती हैं। उनके संवाद और हरियाणवी एक्सेंट में गड़बड़ी साफ दिखाई देती है, जिससे किरदार कमजोर महसूस होता है। स्लो-मोशन में उनके शॉट्स उन्हें एक सशक्त पुलिसवाले के रूप में उभारने में असफल रहते हैं, और उनके संवादों की कमी कहानी में जान डालने के बजाए उसमें और झोल डाल देती है।

दो किरदारों में उलझीं कृति सेनन

कृति सेनन ने दोहरी भूमिका निभाने में पूरी मेहनत की है, लेकिन उनके किरदारों में गहराई की कमी है। उनके संवाद जैसे ‘कभी कमरे से चली जाओ, कभी किचन से’ उन्हें कमजोर और सतही बना देते हैं। ‘देवदास’ जैसे फिल्मों से प्रेरित संवादों में उनके चेहरे के भावों की कमी साफ झलकती है। वह कई मौकों पर किरदार में फिट होने की कोशिश में असहज नजर आती हैं, जिससे कहानी की कमजोर पटकथा उनका भला करने में असफल रहती है।

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निर्देशन और संगीत का अभाव

शशांक चतुर्वेदी की पहली फिल्म होने के नाते, फिल्म के मुख्य कलाकारों और लेखिका का दबाव उन पर साफ दिखाई देता है। कहानी में जब दोनों किरदार एक-दूसरे के करीब आते हैं, तो ‘एनिमल’ का प्रील्यूड सुनाई देता है और वे ‘गुलाम’ की याद दिलाने वाले सीन में फंसे नजर आते हैं। निर्देशन में गहराई की कमी के कारण दर्शक दूसरे एक्ट तक बोरियत महसूस करने लगते हैं और तीसरे एक्ट में थ्रिलर का प्रभाव भी खो जाता है।

निष्कर्ष

‘दो पत्ती’ एक मजबूत आइडिया के साथ आई थी, लेकिन कहानी की कमजोरियाँ, काजोल के किरदार की कमजोरी, और कृति सेनन के पात्रों में गहराई की कमी ने इसे औसत बना दिया है।

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